how to grow garlic in india -लहसुन की खेती कैसे करें

how to grow garlic in india 

-लहसुन की खेती कैसे करें


लहसुन की खेती कैसे करें
लहसुन एक कन्द वाली मसाला फसल है।अदरक और हल्दी की तरह, लहसुन प्राचीन काल से एक मसाला और औषधि दोनों के रूप में एक लोकप्रिय घटक रहा है। चाहे वह एशिया, यूरोप या ऑस्ट्रेलिया हो, लोग भोजन से लेकर चिकित्सा लाभ तक विभिन्न कारणों से दुनिया भर में लहसुन का उपयोग करते हैं। इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है जिसके कारण इसकी एक खास गंध एवं तीखा स्वाद होता है। लहसुन की एक गांठ में कई कलियाँ पाई जाती है ।

 यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। म. प्र. में लहसून का क्षेत्रफल 60000 हे., उत्पादन 270 हजार मे. टन। लहसुन की खेती मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, एवं उज्जैन के साथ-साथ प्रदेश के सभी  जिलों में इसकी खेती की जा सकती है। आजकल इसका प्रसंस्करण कर पावडर, पेस्ट, चिप्स तैयार करने हेतु प्रसंस्करण इकाईया म.प्र. में कार्यरत है जो प्रसंस्करण उत्पादों को निर्यात करके विदेशी मुद्रा आर्जित कर रहे है।

लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त परिस्थिति

भारत में लहसुन की खेती तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में की जाती है।
लहसुन की खेती के लिए आदर्श स्थितियां इस प्रकार हैं

लहसुन की खेती के लिए जलवायु:-

लहसुन को ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है वैसे लहसुन के लिये गर्मी और सर्दी दोनों ही कुछ कम रहे तो उत्तम रहता है अधिक गर्मी और लम्बे दिन इसके कंद निर्माण के लिये उत्तम नहीं रहते है छोटे दिन इसके कंद निर्माण के लिये अच्छे होते है इसकी सफल खेती के लिये 29.35 डिग्री सेल्सियस तापमान 10 घंटे का दिन और 70% आद्रता उपयुक्त होती है


भूमि एवं खेत की तैयारी :-

इसके लिये उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी होती है। भारी भूमि में इसके कंदों का भूमि विकास नहीं हो पाता है। मृदा का पी. एच. मान 6.5 से 7.5 उपयुक्त रहता है। दो - तीन जुताइयां करके खेत को अच्छी प्रकार समतल बनाकर  क्यारियां एवं सिंचाई की नालियां बना लेनी चाहिये।


लहसुन की किस्में :-



यमुना सफेद 1 (जी-1)

यमुना सफेद 1 (जी-1) इसके प्रत्येक शल्क कन्द ठोस तथा बाह्य त्वचा चांदी की तरह सफेद ए कली क्रीम के रंग की होती है। 150-160 दिनों में तैयार हो जाती है पैदावार 150-160 क्विन्टल प्रति हेक्टयर हो जाती है।

यमुना सफेद 2 (जी-50)

शल्क कन्द ठोस त्वचा सफेद गुदा , क्रीम रंग का होता है। पैदावार 130.140 क्विन्टल प्रति हेक्टयर हो जाती है। फसल 165-170 दिनों में तैयारी हो जाती है। रोगों जैसे बैंगनी धब्बा तथा झुलसा रोग के प्रति सहनशील होती है।

यमुना सफेद 3 (जी-282)

इसके शल्क कन्द सफेद बड़े आकार ब्यास (4.76 से.मी.) क्लोब का रंग सफेद तथा कली क्रीम रंग का होता है। 15-16 क्लाब प्रति शल्क पाया जाता है। यह जाति 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 175-200 क्विंटल / हेक्टेयर है। यह जाति निर्यात की दृष्टी से बहुत ही अच्छी है

यमुना सफेद 4 (जी-323)

इसके शल्क कन्द सफेद बड़े आकार (ब्यास 4.5 से.मी.) क्लोब का रंग सफेद तथा कली क्रीम रंग का होता है। 18-23 क्लाब प्रति शल्क पाया जाता है। यह जाति 165-175 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 200-250 क्विंटल / हेक्टेयर है। यह जाति निर्यात की दृष्टी से बहुत ही अच्छी है

प्रदेश में उक्त किस्मों के अलावा स्थानीय किस्में महादेव, अमलेटा आदि को भी किसान अपने स्तर पर सफलतापूर्वक खेती  कर रहे है।


बुवाई का समय -

भारत में, लहसुन को खरीफ (जून-जुलाई) और रबी (अक्टूबर-नवंबर) फसल के रूप में लगाया जाता है- यह क्षेत्रों पर निर्भर करता है। इसे आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, बंगाल और पहाड़ी क्षेत्रों में रबी की फसल के रूप में लगाया जाता है। यह तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में खरीफ और रबी दोनों प्रकार की फसल है।


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बीज एवं बुवाई -

लहसुन की बुवाई हेतु स्वस्थ एवं बडे़ आकार की शल्क कंदो (कलियों) का उपयोग किया जाता है। बीज 5-6 क्विंटल / हेक्टेयर होती है। शल्ककंद के मध्य स्थित सीधी कलियों का उपयोग बुआई के लिए नही करना चाहिए। बुआई पूर्व कलियों को मैकोजेब+कार्बेंडिज़म 3  ग्राम दवा के सममिश्रण के घोल से उपचारित करना चाहिए। लहसुन की बुआई कूड़ों में, छिड़काव या डिबलिंग विधि से की जाती है। कलियों को 5-7 से.मी. की गहराई में गाड़कर उपर से हलकी मिट्टी से ढक देना चाहिए। बोते समय कलियों के पतले हिस्से को उपर ही रखते है। बोते समय कलियों से कलियों की दूरी 8 से.मी. व कतारों की दूरी 15 से.मी.रखना उपयुक्त होता है। बड़े क्षेत्र में फसल की बोनी के लिये गार्लिक प्लान्टर का भी उपयोग किया जा सकता है।

खाद एवं उर्वरक

खाद व उर्वरक की मात्रा भूमि की उर्वरता पर निर्भर करती है। सामान्यतौर पर प्रति हेक्टेयर 20-25 टन पकी गोबर या कम्पोस्ट या 5-8 टन वर्मी कम्पोस्ट, 100 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 50 कि.ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है। इसके लिए 175 कि.ग्रा. यूरिया, 109 कि.ग्रा., डाई अमोनियम फास्फेट एवं 83 कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश की जरूरत होती है। गोबर की खाद, डी.ए. पी. एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि मे मिला देनी चाहिए। शेष यूरिया की मात्रा को खडी फसल में 30-40 दिन बाद छिडकाव के साथ देनी चाहिए।

सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा का उपयोग करने से उपज मे वृद्धि मिलती है। 25 कि.ग्रा. जिन्क सल्फेट प्रति हेक्टेयर 3 साल में एक बार उपयोग करना चाहिए । टपक सिचाई एवं फर्टिगेशन का प्रयोग करने से उपज में वृद्धि होती है जल घुलनशील उर्वरकों का प्रयोग टपक सिर्चाइ के माध्यम से करें ।


सिंचाई एवं जल निकास

बुआई के तत्काल बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। शेष समय में वानस्पतिक वृद्धि के समय 7-8 दिन के अंतराल पर तथा फसल परिपक्वता के समय 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए। सिंचाई हमेशा हल्की एवं खेत में पानी भरने नही देना चाहिए। अधिक अंतराल पर सिंचाई करने से कलियां बिखर जाती हैं ।
लहसुन की सिंचाई करने के लिए सबसे अच्छे आधुनिक अपनाने चाहिए, जैसे स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई। यह उपज को बेहतर बनाने में मदद करता है। यह बाढ़ सिंचाई प्रणाली की तुलना में उपज को 15-25% बेहतर बनाने में मदद करता है।


निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण

जड़ों में उचित वायु संचार हेतु खुरपी या कुदाली द्वारा बोने के 25-30 दिन बाद प्रथम निदाई-गुडाई एवं दूसरी निदाई-गुडाई 45-50 दिन बाद करनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण हेतु प्लुक्लोरोलिन 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व बुआई के पूर्व या पेड़ामेंथिलीन 1 किग्रा. सक्रिय तत्व बुआई बाद अंकुरण पूर्व 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिए।


प्रमुख कीट

 थ्रिप्स - यह छोटे और पीले रंग के कीट होते है जो पत्तियों का रस चूसते है। जिससे इनका रंग चितकबरा दिखाई देने लगता है। इनके प्रकोप से पत्तियों के शीर्ष भूरे होकर एवं मुरझाकर सू ख जाते हैं।

नियंत्रण:-
इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 5 मिली./15 ली. पानी या थायेमेथाक्झाम 125 ग्राम / हे. + सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करना चहिए।

शीर्ष छेदक कीट - इस कीट की मैगट या लार्वी पत्तियों के आधार को खाते हुये शल्क कंद के अंदर प्रवेश कर सड़न पैदा कर फसल को नुकसान पहुँचाती है ।

नियंत्रण:-
1. उपयुक्त फसलचक्र व उन्नत तकनीक से खेती करें ।
2. फोरेट 1-1.5 कि.ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छिडक कर मिलावें।
3. इमिडाक्लोप्रिड 5 मिली./15 ली. पानी या थायेमेथाक्झाम 125 ग्राम / हे. + सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करना चहिए।

प्रमुख रोग

बैंगनी धब्बा - बैंगनी धब्बा रोग (पर्पिल ब्लाच) इस रोग के प्रभाव से प्रारम्भ में पत्तियों तथा उर्ध्व तने पर सफेद एवं अंदर की तरफ धब्बे बनते है, जिससे तना एवं पत्ती कमजोर होकर गिर जाती है। फरवरी एवं अप्रेल में इसका प्रक्रोप ज्यादा होता है।

रोकथाम एवं नियंत्रण
1 .मैकोजेब+कार्बेंडिज़म 2.5 ग्राम दवा के सममिश्रण से प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुआई करें।
2. मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिडकाव करें।
3. रोग रोधी किस्म जैसे जी-50 , जी-1, जी 323 लगावें।


झुलसा रोग - रोग से प्रक्रोप की स्थिति में पत्तियों की उर्ध्व स्तम्भ पर हल्के नारंगी रंग के धब्बे बनते है ।

नियंत्रण
मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का15 दिन के अंतराल पर दो बार छिडकाव करें अथवा कापर आक्सीक्लोराईड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का15 दिन के अंतराल पर दो बार छिडकाव करें।

कटाई

लहसुन 50% गर्दन गिरावट के स्तर पर काटा जाना चाहिए।

खुदाई एवं लहसुन का सुखाना - जिस समय पौधौं की पत्तियाँ पीली पड़ जायें और सूखने लग जाये सिंचाई बन्द कि देनी चाहिए । इसके बाद गाँठो को 3-4 दिनों तक छाया में सुखा लेते हैं। फिर 2 से 2.25 से.मी. छोड़कर पत्तियों को कन्दों से अलग कर लेते हैं । कन्दो को साधारण भण्डारण में पतली तह में रखते हैं। ध्यान रखें कि फर्श पर नमी न हो । लहसुन पत्तियों के साथ जुड़े बांधकर भण्डारण किया जाता है।

छटाई . लहसुन को बाजार या भण्डारण में रखने के लिए उनकी अच्छी प्रकार छटाई रखने से अधिक से अधिक लाभ मिलता है तथा भण्डारण में हानि काम होती है इससे कटे फटे बीमारी तथा कीड़ों से प्रभावित लहसुन छांटकर अलग कर लेते हैं।


उपज

लहसुन की उपज उसकी जातियों भूमि और फसल की देखरेख पर निर्भर करती है प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल उपज मिल जाती है |

भण्डारण

अच्छी प्रक्रिया से सुखाये गये लहसनु को उनकी छटाई कर के साधारण हवादार घरो में रख सकतेहैं। 5.6 महीने भण्डारण से 15.20 प्रतिशत तक का नुकसान मुख्य रूप से सूखने से होता है। पत्तियों सहित बण्डल बनाकर रखने से कम हानि होती है।

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