औषधीय फसल - अफीम |
जलवायु: अफीम की फसल को समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियम तापमान की आवश्यकता होती है।
भूमि: अफीम को प्राय: सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है परन्तु उचित जल निकास एवं पर्याप्त जीवांश पदार्थ वाली मध्यम से गहरी काली मिट्टी जिसका पी.एच. मान 7 हो तथा जिसमें विगत 5-6 वर्षों से अफीम की खेती नहीं की जा रही हो उपयुक्त मानी जाती है।
खेत की तैयारी: अफीम का बीज बहुत छोटा होता है अत: खेत की तैयारी का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए खेत की दो बार खड़ी तथा आड़ी जुताई की जाती है। तथा इसी समय 20-30 गाड़ी अच्छी प्रकार से सड़ी गोबर खाद को समान रूप से मिट्टी में मिलाने के बाद पाटा चलाकर खेत को भुरा-भुरा तथा समतल कर लिया जाता है। इसके उपरांत कृषि कार्य की सुविधा के लिए 3 मी. लम्बी तथा 1 मी. चौड़ी आकार की क्यारियां तैयार कर ली जाती हैं।
प्रमुख किस्में: जवाहर अफीम-16, जवाहर अफीम-539 एवं जवाहर अफीम-540 आदि मध्य प्रदेश के लिए अनुसंशित किस्में हैं
बीज दर तथा बीज उपचार- कतार में बुवाई करने पर 5-6 कि.ग्रा. तथा फुकवा बुवाई करने पर 7-8 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बीज उपचार के लिए 8 ग्राम मैटालेक्जिल अथवा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम + 2 ग्राम मेन्काजेब प्रति किलो बीज के मान से उपचारित करना चाहिए।
बुवाई समय: अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक आवश्यक रूप से करें।
बुवाई विधि: बीजों को 0.5-1 से.मी. गहराई पर 30 से.मी. कतार से कतार तथा 0-9 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी रखते हुए बुवाई करें।
निदाई- गुड़ाई तथा छटाई: निंदाई-गुड़ाई एवं छटाई की प्रथम क्रिया बुवाई के 25-30 दिनों बाद तथा दूसरी क्रिया 35-40 दिनों बाद रोग व कीटग्रस्त एवं अविकसित पौधे निकालते हुए करनी चाहिए। अन्तिम छटाई 50-50 दिनों बाद पौधे से पौधे की दूरी 8-10 से.मी. तथा प्रति हेक्टेयर 3.50-4.0 लाख पौधे रखते हुए करें।
खाद एवं उर्वरक: अफीम की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरक की अनुशंसित मात्रा का उपयोग करें। इस हेतु वर्षा ऋतु में खेत में लोबिया अथवा सनई कि हरी खाद बोना चाहिए। हरी खाद नहीं देने की स्थिति में 20-30 गाड़ी अच्छी प्रकार से सड़ी हुई गोबर खाद ख्ेात की तैयारी के समय दें। इसके अतिरिक्त यूरिया 38 किलो, सिंगल सुपरफास्फेट 50 किलो तथा म्यूरेट आफ पोटाश आधा किलो गंधक/10 भारी के हिसाब से डालें।
सिंचाई: बुवाई के तुरन्त बाद सिंचाई करें, तदोपरान्त 7-10 दिन की अवस्था पर अच्छे अंकुरण हेतु, तत्पश्चात 12-15 दिन के अन्तराल पर मिट्टी तथा मौसम की दशा अनुसार सिंचाई करते रहें। कली, पुष्प, डोडा एवं चीरा लगाने के 3-7 दिन पहले सिंचाई देना नितान्त आवश्यक होता है। भारी भूमि में चीरे के बाद सिंचाई न करें एवं हल्की भूमि में 2 या 3 चीरे के बाद सिंचाई करें। टपक विधि से सिंचाई करने पर आशाजनक परिणाम प्राप्त होते हैं।
अफीम एक व्यावसायिक महत्व की औषधीय फसल है। प्रदेश में वर्तमान में अफीम की खेती 1300 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर की जाती है। अफीम पट्टे (लाइसेन्स) वाली फसल है इस कारण भारत सरकार द्वारा समय-समय पर मांग एवं आपूर्ति के अनुसार अफीम के क्षेत्रफल में परिवर्तन किया जाता है। इसे लगाने के पहले शासन से विधिवत अनुमति लेनी होती है।- डॉ. जी.एन. पाण्डेय
- डॉ.आर.पी.पटेल
- कृपाल सिंह वर्मा
कोई टिप्पणी नहीं:
Write comment