Lahsun ki kheti Kaise kare

Lahsun (Garlic) ki Kheti Kise Kare लहसुन की खेती कैसे करें 
Lahsun ki kheti Kaise kare
Lahsun ki kheti

लहसुन एक महत्त्वपूर्ण फसल है जिसको सब्जी व मसालें के रूप में अधिक प्रयोग किया जाता है । सब्जी को फराई करने के लिये व सुगन्धित करने के लिये डालते हैं । इसकी पत्तियां भी सब्जी व चटनी में खायी जाती हैं । लहसुन को देशी दवाओं में अधिक प्रयोग करते हैं । यह वायु-सम्बन्धी रोगों व आखों, कानों के लिये भी लाभदायक होती है । पोषक-तत्वों की भी प्राप्ति होती है । जैसे- प्रोटीन, खनिज पदार्थ, कैल्शियम, फास्फोरस, कैलोरीज, कार्बोहाइड्रेटस तथा विटामिन ‘सी’ की मात्रा मिलती है । 

लहसुन की खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate For Garlic Kheti)

 इसे सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है । लेंकिन जड़ों (वल्व) वाली फसल होने के कारण बलुई दोमट भूमि उत्तम होती है । मिट्‌टी में जीवांश-पदार्थों की अधिकता हो तथा जल-निकास का उचित प्रबन्ध हो । पी. एच. मान 5-8-7.0 के बीच अच्छा रहता है । लहसुन शरद ऋतु की फसल है । इसलिये ठन्डे मौसम की आवश्यकता पड़ती है । कन्दों या बल्वों की वृद्धि व विकास के लिए कुछ गर्म व लम्बे दिन from मौसम उपयुक्त रहता । 

लहसुन की खेती के लिए खेत की तैयारी (Lahsun Ki Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)

 लहसुन बल्व वाली फसल है । इसलिए खेत की तैयारी उचित ढंग से जुताई व पाटा लगाकर करें जिससे मिट्‌टी बारीक व भुरभुरी हो जाये । इस प्रकार से 4-5 जुताई मिट्‌टी पलटने वालें व देशी हल से करें तथा प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलायें । घास आदि को खेत से बाहर निकाल कर जला दें । तत्पश्चात् क्यारियां छोटे आकार में बना लें । बगीचों की यह एक मुख्य फसल है जिसका मसालें के रूप में प्रयोग करते हैं । अच्छा उगाने के लिये 4.5 गहरी गर्मी में खुदाई करें तथा बोने से 15-20 दिन पहलें फिर दो खुदाई करके मिट्‌टी को बारीक करें तथा छोटी-छोटी क्यारियां बना लें । गमलों में मिट्टी व खाद (2 : 1) मिश्रण भर लें । गमलों में नीचे छेद पर पत्थर अवश्य रखें ।

 लहसुन की उन्नतशील किस्में (Improved Varieties of Lahsun)

 उन्नत-किस्मों की विशेषता इस प्रकार है- आई. सी. 49381- इन दोनों किस्मों को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है । ये किस्में पांच-छ: महीने में तैयार हो जाती हैं तथा अधिक पैदावार देने वाली किस्में है । टाइप 56-4- यह किस्म छोटे बल्वों वाली होती है तथा पुत्तियों का रंग सफेद होता है जो कि आसानी से पैदा की जा सकती है । फावरी- यह किस्म अधिक उपज देने वाली है तथा इसके बल्व व पुत्तियां बड़ी होती हैं जो 150-165 दिन में तैयार हो जाती हैं । रजाले गद्दी- यह किस्म भी फावरी किस्म से मिलती-जुलती है । इसके कन्द व बल्व बड़े आकार के होते हैं तथा पुत्तियां भी बड़ी होती हैं । सोलन- ये किस्म भी अधिक उपज वाली है । बल्व बड़े तथा छिलका सफेद रंग का होता है । प्रत्येक बल्व में 5-6 पुत्तियां होती हैं जो बड़ी होती है । हिसार-लोकल- यह किस्म भी सफेद होती है । बल्व बड़े आकार के होते हैं तथा पुत्तियां भी बड़ी होती हैं । यह किस्म हरियाणा क्षेत्र के लिये उपयुक्त है । 

बीज की मात्रा, बोने का समय एवं ढंग (Seeds Rate, Sowing Time and Method) 

बीज का प्रयोग आकार पर निर्भर करता है क्योंकि इसकी पुत्तियों (Cloves) को बोते हैं । लगभग 400 किलो से 600 किलो पुत्तियां प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है । ध्यान रहे कि पुत्तियों के छिलका को नहीं हटायें अन्यथा पुत्तियां सूख जायेंगी । लहसुन की बुवाई 15 सितम्बर-नवम्बर के महीने तक करते हैं लेंकिन उत्तम समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक है । बुवाई छोटी-छोटी क्यारियां बना कर करें । बल्वों से पुत्तियों को अलग करके एक-एक पुत्ती को कतारों या कूड़ों में बोयें । कतारों की दूरी 15 सेमी. तथा पुत्ती से पुत्ती की दूरी 8-10 सेमी. आकार के अनुसार लगायें । लगाते समय ध्यान रखें कि पुत्तियों का नुकीला भाग मिट्‌टी से ऊपर रखें तथा जड़ वाले को आधे से अधिक भूमि में दबायें । जब तक अंकुरण हो तो नमी का होना आवश्यक है । लगाने के पश्चात् हल्की सिंचाई करें । पानी का बहाव तेज ना हो । बगीचों के लिए 200-250 ग्रा. पुत्तियां काफी होती हैं तथा गमलों में 4-6 पुती में प्रति गमला लगा सकते हैं । 

खाद व उर्वरकों का प्रयोग (Use of Manure and Fertilizers) 

लहसुन के लिए 25-30 ट्रौली अच्छी-सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर डालें तथा 230 किलो यूरिया नत्रजन के लिये, 300 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 किलो म्यूरेट आफ पोटाश (50:50:60) प्रति हैक्टर मात्रा आवश्यक है । 100 किलो यूरिया व पूरी फास्फेट तथा पोटाश को अन्तिम जुताई के साथ डालकर मिट्‌टी में मिलायें । 130 किलो यूरिया को दो भागों में करके पहला भाग 20-30 दिन के बाद पौधों में छिड़कें तथा दूसरा भाग बोने के 45-50 दिन के बाद खड़ी फसल में कतारों के बीच डालें जिससे वल्व वृद्धि कर सकें । ध्यान रहे कि यूरिया देने के 1-2 दिन बाद सिंचाई करें । बगीचों व गमलों के लिये खाद आवश्यक है । 6-7 टोकरी देशी सड़ी गोबर तथा 200 ग्राम यूरिया, 500 ग्राम डी.ए.पी. तथा 300 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिये पर्याप्त होता है । गमलों में 3-4 चम्मच डालें तथा बाद में यूरिया आवश्यकतानुसार 1-2 चम्मच प्रयोग करें तथा यूरिया देते समय नमी रहे तथा बाद में भी पानी दें । 

सिंचाई एवं खरपतवार नियन्त्रण (Irrigation and Weeds Control) 

बुवाई पलेवा करके करनी हो तो सिंचाई 15-20 दिन में करें अन्यथा नमीनुसार पहले करें । पहली सिंचाई बहुत हल्की करें अन्यथा पुत्तियां उखड़ जायेंगी । अन्य सिंचाई जाड़ों में 12-15 दिन व गर्मियों में 6-7 दिन के अन्तर से करें । पत्तियां धीरे-धीरे पीली पड़ने लगें तो समझो फसल पकने लगी । इस समय पानी देना बन्द करें । सिंचाई के बाद खरपतवार हो जाते हैं । अच्छी उपज लेंने के लिये खरपतवारों को निकालना जरूरी हो तो 1-2 निकाई-गुडाई करें जिससे घास पैदा न हो पाये । खरपतवार फसल को पोषक-तत्व पूर्ण रूप से नहीं मिलने देते जिससे फसल कमजोर हो जाती है । बगीचों व गमलों की सिंचाई समय-समय पर आवश्यकतानुसार 2-3 दिन के बाद करें तथा गर्मी में गमलों में शाम को रोज पानी डालें । मिट्‌टी सूखने से पहले ही पानी दें तथा साथ-साथ निकाई-गुड़ाई करके घास हो तो निकाल दें तथा गमलों की भी गुड़ाई करें जिससे मिट्‌टी ढीली रहे और बल्वों का विकास ठीक हो सके । 

रोगों से लहसुन के पौधों की सुरक्षा कैसे करें Rogon Se Lahsun Ke Paudhon Ki Suraksha Kaise Kare


 कीटों का अधिक प्रकोप नहीं होता लेंकिन कभी-कभी भुनगा कीट पत्तियों के रस को चूसता है । भुनका के नियन्त्रण के लिए मेढास्सिटाम्स का 0.1 या 0.2% का छिड़काव करें । झुलसा रोग का प्रकोप होता है जिससे पौधों की पत्तियों पर भूरे धब्बे हो जाते हैं । नियन्त्रण के लिए डाईथेन जैड-78 की 2 ग्रा. दवा प्रति लीटर पानी में घोल कर 2-3 बार छिड़कने से रोग रुक जाता है । 

खुदाई (Digging) 


खुदाई बल्वों को पूर्ण रूप से विकसित होने पर करनी चाहिए । जब पत्तियां पीली पड़ने लगें तो फसल पकनी आरम्भ हो जाती है । फसल लगभग छ: महीने में तैयार हो जाती है । खुदाई खुरपी से या हाथों से उखाड़ना चाहिए । बल्वों, पत्तियों सहित 5-6 दिन छाया में सुखायें तथा बाद में पत्तियों के डंठल को काट दें । उपज (Yield) उपरोक्त कृषि-क्रियाएं उचित ढंग से करने पर 80-90 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है । बगीचों में लहसुन के 8-10 किलो बल्व प्राप्त किये जा सकते हैं तथा एक गमलें से 200-250 ग्रा. पुत्तियां प्राप्त की जा सकती हैं । लहसुन एक छोटे परिवार के सदस्यों को पूरे वर्ष प्रयोग होता रहेगा

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